यदि राजा के राज्य के सभी कारीगर अपने-अपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर रहे होते तब गवरइया के साथ उन कारीगरों का व्यवहार कैसा होता?
गवरइया अपना रुई का फाहा लेकर एक-एक कर धुनिये, कोरी, बुनकर और दर्जी के पास गई। सभी ने उससे कहा कि वो राजा का काम कर रहे हैं इसलिए उसका काम नहीं करेंगे। वहीं जब गवरइया ने उन्हें उचित मूल्य देने की बात कही तो वो राजा का काम छोड़कर उसकी टोपी बनाने में लग गए। राजा अपने किसी कारीगर को उचित मूल्य नहीं दे रहा था। अगर वो सही पैसे देता तो कारीगर पहले राजा का काम करते। राजा का काम पूरा होने तक गवरइया को इंतजार करना पड़ता।